प्रधानाचार्य का संदेश

“Expanding like the petals of young flowers,

I watch the gentle opening of your minds,

And the sweet loosening of the spell that binds,

Your intellectual energies and powers,

That stretch (like young birds in Soft summer hours)

their Wings to try their strength.”


विद्यालय एक उपवन की भांति होता है | जहां भांति-भांति के पुष्प खिले रहते हैं | जिन्हें माली सींच कर, पोषित कर, पुष्पित पल्लवित करता है | जिस प्रकार गमले में फूल, फूलों में सुगंध व पराग तथा पराग का रसास्वादन करने वाले भौरों का गुंजार समस्त वातावरण को आनंदित करता है उसी प्रकार मां सरस्वती के पावन मंदिर, विद्यालय में विद्यार्थी, शिक्षार्थियों में ज्ञान की पिपासा व उस पिपासा को शांत करने वाली योग्य शिक्षिकाओं की अनुभवशीलता, कर्तव्यनिष्ठा और अपने दायित्वों के प्रति ईमानदारी ने मोदीनगर क्षेत्र के शैक्षिक वातावरण का उन्नयन किया है |

हमारा उद्देश्य केवल शैक्षिक व बौद्धिक विकास करना ही नहीं है बल्कि शारीरिक चारित्रिक व आध्यात्मिक विकास करना भी है | इसके लिए बालक अपने माता-पिता व गुरुजनों से प्रेरणा ग्रहण करते हैं | उनके द्वारा किए गए किसी भी कार्य का बच्चों के कोमल मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है | प्रत्येक विद्यार्थी को यह जानना चाहिए कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए उसे अपने भीतर कुछ गुणों को जागृत करना आवश्यक है |


शास्त्रों में कहा गया है -

“ काक चेष्टा वको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च

अल्पाहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पंचलक्षणम् |”

अर्थात कौवे जैसी चपलता, बगुले जैसा ध्यान, कुत्ते जैसी नींद जो जरा सी आहट में खुल जाए, हल्का सीमित व संतुलित आहार लेना यह आदर्श विद्यार्थी के पांच लक्षण है | इसके अतिरिक्त विद्यार्थी को विनम्र होना चाहिए कहा भी गया है कि – “विद्या ददाति विनयम” अर्थात विद्यार्थी को सर्वप्रथम विनम्र एवं शिष्ट होना चाहिए |

शिक्षा को ग्रहण करने की प्रथम सीढ़ी है अनुशासन | प्रकृति का प्रत्येक तत्व सूर्य, चंद्र, पक्षी, पेड़-पौधे, नदियां हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं | यदि एक दिन सूर्य न निकले तो क्या होगा ? यदि प्रकृति, समुद्र, नदियां, मानव ये सभी अपनी-अपनी मर्यादा को त्याग कर अनुशासन रहित होकर मनमानी करने लगेंगे तो सर्वत्र हाहाकार मच जाएगा | अनुशासन के इस गुण को सीखने के लिए आपको अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं है, कहते हैं बालक की प्रथम गुरु मां होती है | यदि हम अपने घर में ही देखें तो शायद सर्वाधिक अनुशासन में हमारी मां रहती है | यदि एक दिन माँ अनुशासन तोड़कर ना उठे तो ना सबको समय पर अपना भोजन मिलेगा और ना अपनी आवश्यक वस्तुएं, पूरा घर अस्त-व्यस्त हो जाएगा | बहुत सरल शब्दों में मैं आपको समझाना चाहती हूं कि न केवल शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि जीवन में भी वही बालक उन्नति करते हैं जो नियमित व अनुशासित होते हैं और समाज को उन्नति शील एवं विकसित बनाने में अहम भूमिका का निर्वहन करते हैं | आज का बच्चा ही कल का भावी नागरिक होगा |

महिलाओं का दायरा अब मात्र परिवार तक ही सीमित नहीं है, वह पुरानी बंदिशों को तोड़कर प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के नए आयाम स्थापित कर रहीं हैं | ऐसे में हमारी बालिकाओं को सशक्त बनना होगा | किसी भी असफलता से ना घबरा कर पूरे उत्साह और मनोयोग से अपनी विफलता को भी सफलता में बदला जा सकता है,

यदि हम Rudyard Kipling इन की इन पंक्तियों को ध्यान में रखें -

if you can dream and not make dreams your master

if you can think and not make thoughts your aim

if you can meet with Triumph and disaster

and treat these two impostors just the same;

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“If you can fill the unforgiving minute

with 60 seconds worth of distance run

yours is the earth and everything that is in it “

प्रकृति का कण-कण हमें किसी न किसी गुण को अपनाने की प्रेरणा देता है | इन्हीं आदर्शों से छात्रों को ओत-प्रोत करते हुए विद्यालय छात्राओं को शिक्षित कर समाज सेवा हेतु अग्रसारित कर रहा है ईश्वर से मेरी भी यही प्रार्थना है कि हमारा विद्यालय भविष्य में भी इसी प्रकार देश और समाज की सेवा करते हुए अपना अनूठा मानदंड स्थापित करे |

इति शुभम, धन्यवाद

श्रीमती शिवाली बंसल
प्रधानाचार्या -आदर्श कन्या इण्टर कॉलेज, गोविन्दपुरी मोदीनगर